“इक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि!!
जप आद सचु जुगादि सच।
है भी सचु नानक होसी भी सच।।
सोचे सोचि न होवई जे सोची लख बार।
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।
भुखिया भुख न उतरी जे बंना पुरीआं भार।
सहस सियाणपा लख होहि, त इक न चले नाल।
किव सचियारा होइए, किव कूड़ै तुटै पाल। हुकमि रजाई चलणा ‘नानक’ लिखिआ नाल। “
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि!!
जप आद सचु जुगादि सच।
है भी सचु नानक होसी भी सच।।
सोचे सोचि न होवई जे सोची लख बार।
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिवतार।
भुखिया भुख न उतरी जे बंना पुरीआं भार।
सहस सियाणपा लख होहि, त इक न चले नाल।
किव सचियारा होइए, किव कूड़ै तुटै पाल। हुकमि रजाई चलणा ‘नानक’ लिखिआ नाल। “

‘वह एक है, ओंकार स्वरूप है, सत नाम है, कर्ता पुरुष है, भय से रहित है, वैर से रहित है, कालातीत- मूर्ति है, अयोनि है, स्वयंभू है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।’