Wednesday 26 March 2014

पापमोचिनी एकादशी

चैत्र : कृष्ण पक्ष
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते है ।
एकादशी महात्म्य 


अर्जुन बोला - "हे मधुसूदन ! मैं ज्यों-ज्यों एकादशियों के व्रतों की कथाएं सुन रहा हूं, त्यों-त्यों अन्य एकादशियों के व्रतों की कथाएं सुनने की मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है । हे श्री कृष्ण ! अब कृपाकर आप चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइए । इस एकाद्शी का नाम क्या है ? इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है ? हे गोपाल ! यह सब मुझे विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें ।"
श्री कृष्ण भगवान् बोले - "हे पाण्डुनन्दन ! एक समय यही प्रश्‍न पृथ्वीपति मान्धाता ने लोमश ऋषि से किया था, जो कुछ लोमश ऋषि ने नृपति मान्धाता को बताया था, वही मैं तुमसे कहता हूं । धर्म के गुह्यतम रहस्यों के ज्ञाता राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से पूछा - ’हे महर्षि ! मनुष्य के पापों का मोचन किस प्रकार सम्भव है ? कृपा कर कोई ऐसा सरल उपाय बताएं, जिससे सहज ही पापों से छुटकारा मिल जाए ।’
लोमष ऋषि बोले - ’हे राजन ! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ’पापमोचिनी’ है । उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्‍ट हो जाते हैं । मैं तुम्हे इसकी कथा सुनाता हूं , ध्यानपूर्वक सुनो - प्राचीनकाल में चैत्ररथ नामक एक वन था । उसमें अप्सराएं किन्नरों के साथ विहार करती थीं । वहां हर समय वसन्त रहता था अर्थात्‌ उस जगह सदैव प्रत्येक तरह के पुष्प खिले रहते थे । कभी गन्धर्व कन्याएं विहार किया करती थी, कभी इन्द्र अन्य देवताओं के साथ क्रीड़ा किया करते थे । उसी वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे । वे शिवभक्‍त थे । एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित कर उनके नैकट्‌य का लाभ उठाने की चेष्‍टा की । इसके लिए वह कुछ दूरी पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी । उसी समय कामदेव भी शिवभक्‍त उन मुनि को जीतने का प्रयास करने लगे । कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रू का धुनष बनाया । कटाक्ष को उसकी प्रत्यंचा (डोरी) बनाई और उसके नेत्रों को उस मंजुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया । इस तरह कामदेव अपने शत्रुभक्‍त को जीतने को तैयार हुआ । उस समय मेधावी मुनि भी युवा तथा हृष्‍ट-पुष्‍ट थे । उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दंड धारण कर रखा था । वे दूसरे कामदेव के समान प्रतीत होते थे । उस मुनि को देखकर कामदेव के वश में हुई मंजुघोषा ने धीरेधीरे मधुर वाणी से वीणा पर गाना शुरु किया तो मेधावी मुनि भी मंजुघोषा के मधुर गाने पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गये । वह अप्सरा मेधावी मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर उनसे आलिंगन करने लगी । मेधावी मुनि उसके सौन्दर्य पर मोहित होकर शिव रहस्य को भूल गये और काम के वशीभूत होकर उसके साथ रमण करने लगे ।
उस मुनि को काम के वशीभूत होने के कारण उस समय दिन-रात का कुछ भी ध्यान न रहा और बहुत समय तक वे रमण करते रहे । तदुपरान्त मंजुघोषा उस मुनि से बोली - "हे मुनि ! अब मुझे बहुत समय हो गया है, अतः स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए ।"
उस अप्सरा की बात सुनकर मुनि बोले - "हे सुन्दरी ! संध्या को तो आई हो, प्रातःकाल होने पर चली जाना ।"
मुनि के ऐसे वचनों को सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी । इसी प्रकार उन्होंने साथ-साथ बहुत सम्य बिताया ।
एक दिन फिर मंजुघोषा ने मेधावी मुनि से कहा "हे देव ! अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए ।"
इस बार फिर मुनि ने कहा - "हे सुन्दरी ! अभी तो कुछ भी समय नहीं व्यतीत हुआ है, अभी कुछ समय और ठहरो ।"
इस पर वह अप्सरा बोली - "हे मुनि ! आपकी रात्रि तो बहुत लम्बी है । आप स्वयं ही सोचिए कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया । अब और अधिक समय तक ठहरना क्या उचित है ?"
उस अप्सरा की बात सुनकर मुनि को समय का बोध हुआ और वह गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगे । जब उन्हें बोध हुआ कि उन्हें रमण करते-करते सत्तावन वर्ष व्यतीत हो चुके हैं तो उस अप्सरा को वह काल का रुप समझने लगे । इतना अधिक समय भोग-विलास में व्यर्थ हो जाने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया । वह अत्यंत क्रोधित हुए और उस तप नाश करने वाली अप्सरा की तरफ भृकुटी तानकर देखने लगे । उनके अधर कांपने लगे और इन्द्रियां बेकाबू होने लगीं । क्रोध से थरथराते स्वर में वह उस अप्सरा से बोले - "अरी दुष्‍टा ! मेरे तप को नष्‍ट करने वाली, तू महान् पापिन और दुराचारिणी है, तुझे धिक्कार है । अब तू मेरे शाप से पिशाचिनी हो जा ।"
उन मुनि के क्रोध युक्‍त शाप से वह पिशाचिनी हो गई । फिर व्यथित होकर बोली - "हे मुनि ! अब मुझ पर क्रोध को त्याग कर प्रसन्न होइए और कृपा करके बताइए कि इस शाप का निवारण किस प्रकार होगा ? विद्वानों ने कहा है, साधुओं की संगत अच्छा फल देने वाली है, इसलिए आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष व्यतीत हुए हैं । अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइए अन्यथा लोग कहेंगे कि एक पुण्य आत्मा के साथ रहने पर मंजुघोषा को पिशाचिनी होना पड़ा ।" मंजुघोषा की बात सुनकर मेधावी मुनि को अपने क्रोध पर ग्लानि भी हुई और अपनी अपकीर्ति का भी भय हुआ । अतः पिशाचिनी बनी मंजुघोषा से उन्होंने कहा - "तूने मेरा बड़ा बुरा किया है परन्तु फिर भी मैं तुझे इस शाप से छूटने का उपाय बतलाता हूं । चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम पापमोचिनी है । उस एकादशी का व्रत करने से तू पिशाचिनी की देह से छूट जायेगी ।"
इस प्रकार मुनि ने उसको समस्त विधि बतला दी । फिर अपने पापों के प्रायश्‍चित के लिए वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये ।
च्यवन ऋषि अपने पुत्र मेधावी को देखकर बोले - "रे पुत्र ! तूने ऐसा क्या किया है, तेरे समस्त तप नष्‍ट हो गये हैं ? जिससे तुम्हारा सारा तेज क्षीण हो गया है ?"
मेधावी लज्जा से सिर झुकाकर बोले - "पिताजी ! मैंने एक अप्सरा से रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है । इसी पाप के कारण सम्भवतः मेरा सारा तेज और मेरे तप नष्‍ट हो गए हैं । कृपा करके आप इस पाप से छूटने का उपाय बतलाइए ।"
च्यवन ऋषि बोले - " हे तात ! तुम चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधि तथा भक्‍तिपूर्वक व्रत करो, इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्‍ट हो जायेंगे ।"
पिता के वचनों को सुनकर मेधावी ऋषि ने पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास किया । उसके प्रभाव से उनके समस्त पाप नष्‍ट हो गये । मंजुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से पिशाचिनी की देह से छूट गई और सुन्दर रुप धारण करके स्वर्ग लोक चली गई ।
लोमश मुनि बोले - "हे राजन् ! इस पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से सब पाप नष्‍ट हो जाते हैं । इस एकादशी की कथा के श्रवण व पठन से एक हजार गौदान करने का फल मिलता है । इस व्रत के करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, मद्यपान करने वाले, अगम्या गमन करने वाले आदि पाप नष्‍ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्ग लोक की प्राप्‍ति होती है ।
कथासार

इस कथा से स्पष्‍ट है कि देहजन्य आकर्षण अधिक समय तक नहीं रहता । देह के लोभ में पड़कर मेधावी ऋषि अपने तप संकल्प को भूल गये । इसे घोर अपराध माना जाता है, किन्तु भगवान् विष्णु की पापमोचिनी शक्‍ति इस घोर अपराध के पाप से भी सहज ही मुक्‍ति दिलाने में सक्षम है । जो प्राणी सद्‌कर्मों का संकल्प करके बाद में लोभ-लालच और भोग-विलास के वशीभूत होकर अपने संकल्प से गिर जाते हैं, वे घोर नरक के अपराधी होते हैं, किन्तु पापमोचिनी सभी पापों से मुक्‍त करके प्राणी को स्वर्ग का अधिकारी बना देती है ।
संदर्भ :- http://www.khapre.org/
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र 

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||ज्ञानेशो भगवान विष्णू ||
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अक्षय भोसले - ८४५१८२२७७२
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र

Tuesday 25 March 2014

साधक वर्गास (युवा वर्गास) श्री संत तुकाराम महाराजांचा उपदेशपर अभंग

||ज्ञानेशो भगवान विष्णू ||

साधक वर्गाला संपूर्ण युवा वर्गास तुकाराम महाराजांनी केलेला उपदेश - 
खालील उपदेशाच जर युवकांनी आपल्या जीवनात अनुकरण केल तर नक्कीच तो एक दिवस आयुष्यातला सर्वोच आनंद प्राप्त करेल .
साधकाची दशा उदास असावी | उपाधी नसावी अंतर्बाह्य || १ ||
लोलुपता काय निद्रेते जिणावे | भोजन करावे परिमित ||२ ||
एकांती लोकांती स्त्रियांसी भाषण | प्राण गेल्या जाण करू नये ||३ ||
संग सज्जनांचा उच्चार नामाचा | घोष कीर्तनाचा अहर्निशी ||४ ||
तुका म्हणे ऐशा साधनी जो राहे | तोची ज्ञान लाहे गुरुकृपा ||५ ||
गुरुकृपा 
अक्षय भोसले - ८४५१८२२७७२
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र

गुढीपाडव्याच्या हिंदू नववर्षाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! - अक्षय भोसले


सुजनवाक्य :- " प्रपंच सांडोनी परमार्थ कराल | तेणे तुम्ही कष्टी व्हाल || " - श्री महंत प्रमोद महाराज जगताप

सुजनवाक्य :- 


" प्रपंच सांडोनी परमार्थ कराल | तेणे तुम्ही कष्टी व्हाल || "

पारमार्थिक जीवन जगत असताना अनेक साधकांचे दुर्लक्ष होते .
एकांगी परमार्थ करीत हि साधक मंडळी शेवटी कष्टी होतात , असे श्री स्वामी महराज म्हणतात .
प्रोंच सांडोनी परमार्थ कराल | तेणे तुम्ही कष्टी व्हाल |
प्रपंच परमार्थ चालवाल | तरी तुम्ही विवेकी ||

परमार्थ जरी करीत असला तरीसुद्धा अन्न , वस्त्र , निवारा या मुलभूत गरजा आल्याच . त्या पूर्ण करताना साधकाची त्रेधातिरपीट उडते . महाराज म्हणतात अगदी संन्यासी जरी असला तरी त्याला दुपारी बारा वाजता दोन घास अन्न पाहिजेच .

जरी झाला सन्यासी | तरी माध्यानासी तोंड वासी ||

लज्जा रक्षणाकरिता आणि शरीर संरक्षणयाकरिता वस्त्र पाहिजे .विश्रांती करिता निवारा पाहिजे . पारमार्थिक झाला तरी त्याला प्रपंच आहेच . तो टाकून कसा चालेल ? आणि जर प्रपंच सोडून परमार्थ करायचा म्हटला तरी त्यात कष्ट भोगावे लागतील . जर परमार्थ व प्रपंच यांची सांगड घातली तरच तो विवेकी मनुष्य होय .

प्रपंच परमार्थ चालवाल | तरी तुम्ही विवेकी ||

श्री समर्थ रामदास स्वामी महाराज पुढील ओवीत मोठ मार्मिक वर्णन करतात .

प्रपंच सांडून परमार्थ केला | तरी अन्न मिळेना खायला |
मगतया करंट्याला | परमार्थ कैंचा || - दासबोध
.
प्रपंचाकडे पाठ फिरवून नुसताच परमार्थ करीत बसलात तर खायला दुपारी अन्न सुद्धा मिळणार नाही ; मग अशा कमनशिबी माणसाला परमार्थ कसा बरे साध्य होईल ? श्री संत ज्ञानेश्वर माऊली सुद्धा एका ठिकाणी सुंदर उपदेश करतात :

का सोडिसी गृह आश्रम | का संडिसी कुळीचे धर्म ||

हा सुंदर असा गृहस्थाश्र्म का सोडतोस ? कुळीचे कुलधर्म का त्यागतोस ? हा प्रपंच परमार्थाच्या आड येणार नाही . फक्त प्रपंचात रममाण न होता , त्यातच रत न होता परमार्थ हि करावा .
हि एक बाजू झाली , आता ण परमार्थ न करिता केवळ प्रपंचात रमणारे जे लोक आहेत त्यांचा हि स्वामी महाराजांनी विचार सांगितला आहे .
धन्यवाद .
 वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र राज्य 

संत एकनाथ महाराज वाडा :- विजयी पांडुरंग दर्शन

|| ज्ञानेशो भगवान विष्णू ||

शांतीब्रह्म संतश्रेष्ठ एकनाथ महाराज षष्ठी सोहळा २०१४
अनुभवण्याचा भाग्य माऊली कृपेने प्राप्त झाल .
शरणरशरण एकनाथा । पायी माथा ठेविला ॥
नका पाहु गुणदोष । झालो दास पायाचा ॥
आदरणीय तथा परमस्नेही ह.भ.प. Yogirajजी गोसावी , ह.भ.प. Pushkar ji गोसावी , सर्वच गोसावी परिवार यांची भेट झाली . प्रचंड गर्दी भाविकांची वरदळ असतानाही दोन्ही हि बंधूनी २ ते ३ तास आमच्या सोबत व्यतीत केले . श्री विजयो पांडुरंगाची मूर्तीच अतिशय जवळून अस गाभार्यातून दर्शन पुष्कर महाराजांमुळे प्राप्त झाल . गौरव अपरंपार यांच्या सोबत लाखोंच्या संख्येने भाविक असताना काही क्षणात संतश्रेष्ठ एकनाथ महाराज यांच्या समाधीच दर्शन झाल . केवळ आणि केवळ माऊली कृपा 
संपूर्ण नाथवंशज परिवाराच प्रेम असच माऊली कृपेने माझ्यावर सदोदित राहव .
समस्त वारकरी संप्रदाय युवा मंच परिवार :)

४१५ वा भागवतोत्तम शांतीब्रह्म संत एकनाथ महाराज षष्ठी सोहळा , श्री क्षेत्र पैठण

|| ज्ञानेशो भगवान विष्णू ||
४१५ वा भागवतोत्तम शांतीब्रह्म संत एकनाथ महाराज षष्ठी सोहळा , श्री क्षेत्र पैठण येथे सुरु ..
शरण शरण एकनाथ | पायी माथा ठेविला ||
नक्कीच जास्तीत जास्त सहभागी व्हा !
शांतीब्रम्ह संतश्रेष्ठ एकनाथ महाराज षष्ठी सोहळा २०१४
https://www.facebook.com/events/1394440904159797/1400885363515351/?notif_t=event_mall_reply
पहा LIVE अपडेट ४१५ वा शांतीब्रम्ह संतश्रेष्ठ एकनाथ महाराज षष्ठी सोहळा २०१४
विशेष साह्य :-
ह.भ.प. Pushkar महाराज गोसावी .
ह.भ.प.ज्ञानराज महाराज गोसावी .
ह.भ.प.Yogiraj महाराज गोसावी .
आणि संपूर्ण नाथ वंशज परिवार ...

तुमचा ,
अक्षय भोसले
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र
 

Friday 14 March 2014

|| पाच दिवसीय अखंड हरिनामा यज्ञ || - मु.पो मोगराळे ता .माण , जि. सातारा

|| पाच दिवसीय अखंड हरिनामा यज्ञ || - मु.पो मोगराळे ता .माण , जि. सातारा 


दिनांक :- १४ मार्च २०१४ ते १८ मार्च २०१४
व्यासपीठ :- प.पु .गुरुवर्य शंकर महाराज रसाळ शिष्य परिवार तथा ह.भ.प.अक्षय महाराज भोसले
पाच दिवस नियमित विभगातील नामवंत अभ्यासू कीर्तनकरांद्वारे समाज प्रबोधन संत साहित्य विचार !
पाहटे :- काकडा
सकाळी ९.३० ते १२.३० :- ज्ञानेश्वरी पारायण तथा संगीतमय संत तुकारम गाथा भजन
दुपारी ३ ते ५ :- महिला भजन कार्यक्रम
सायंकाळी ५ ते ७ :- तुकाराम महाराजंचे जीवनचरित्र अधिक प्रवचन
सायंकाळी ७ ते ८ :- हरिपाठ
रात्री ९ ते ११ :- हरी कीर्तन
रात्री ११ वाजता :- हरिजागर
संपूर्ण कार्यक्रमास वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र यांचे माण तालुका येथील सर्व गायक , वादक ,बाल कीर्तनकार ,युवा कीर्तनकार उपस्थित असतील .
जास्तीत जास्त लोकांनी नक्कीच कार्यक्रमाचा आनंद घ्यावा .
विशेष सहकार्य :- युवा कीर्तनकार .ह .भ.प. सतीश महाराज आवटे ( ग्रामसेवक - कोळकी , ता . फलटण ) ( माण तालुका तथा फलटण तालुका येथे आदरणीय सतीशजी आवटे हे ग्रामसेवक असून हि आपली नोकरी सांभाळत यांनी प्रमणात वारकरी संप्रदाय युवा मंच यांच्या विचाराचा प्रचार प्रसार करून नव युवक वर्गाला संप्रदाय समजावून सांगून अनेक लोकांना सन्मार्गाला लावले अनेक व्यसनी व्यक्ती निर्व्यसनी केले व त्यांच्या द्वारे हि आता ते समजा प्रबोधनाच कार्य करीत आहेत )
आयोजक :- समस्त जगदाळे परिवार तथा ग्रामस्थ मंडळ मु.पो मोगराळे ता .माण , जि. सातारा
संपर्क :- ८४५१८२२७७२ / ९८६०३०४३७५ ( ह.भ.प.सतीश महाराज आवटे )
तुमचा ,
अक्षय भोसले
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र .

Wednesday 12 March 2014

आदरणीय . चित्रांगना जी वाढदिवसाच्या संगीतमय शुभेच्छा !

|| ज्ञानेशो भगवान विष्णू ||

प्रथमत : शतश प्रणाम व आपणास वाढदिवसाच्या स्नेहपूर्वक लक्ष लक्ष शुभेच्छा ! 
आपला वाढदिवस खरतर उद्या आहे पण आमच्याकडून एकदिवस आधीच  आपण अगदी लहान वयात अर्थात वयाच्या ५ व्या वर्षी कत्थक शिकलात आणि तद्नंतर लगेचच पखवाज हि ...आज आपण जागतिक कलाकारांमध्ये हि अग्रगण्य आहात व प्रथम महिला पखवाज वादक म्हणून आपण संपूर्ण विश्वात आपली ख्याती हि आहे . पण अपना विषयी एक गोष्ट सर्वांनाच सांगायला आनंद वाटेल कि तरीही आपण अत्यंत नम्र आणि खरच एखाद्या व्यक्तीला कलेविषयी माहिती अथवा काही मदत लागली तर आपण लगेच मदतीकरता सरसावत .
आपुलिया हिता जो असे जागता । धन्य माता पिता तयाचिया ।।
कुळी कन्या पुत्र होती जे सात्विक । तयाचा हरिख वाटे देवा ।।
आपणास जगतगुरू तुकराम महाराजंचा अभंग पूर्णतः लागू होतो हे सांगण्यास ताई फार आनंद वाटत आहे .
आजच्या काळातील माझ्या सर्व युवक विशेषता माझ्या भगनी वर्गाच्या आपणा आदर्श आहत . आणि पुढे आपण संगीतमय जीवनात उत्तरोतर कायम कलेच्या शिखरावर जावोत हि पांडुरंग परमात्मा तथा ज्ञानेश्वर माऊली जवळ प्रार्थना .आपणास शुभेच्छा द्याव्यात यापेक्षा आपणच आमच्या सर्व तरुण युवा संगीत प्रेमी व्यक्तींवर आपले प्रेम आशीर्वाद कायम ठेवावेत हीच विनंती . पुनश्च एकदा वाढदिवसाच्या संगीतमय शुभेच्छा !
अक्षय भोसले - 8451822772
वारकरी संप्रदाय युवा मंच , महाराष्ट्र