Saturday 14 January 2017

वारकरी सम्प्रदाय के विशेष अधिकारी पुरुष पू. श्री धुंडा महाराज देगलुरकर के 61 वें जन्मदिवस पर पंढरपुर में आयोजित समारोह में प्रकट उद्गार - पू. गोळवलकर गुरुजी

वारकरी सम्प्रदाय के विशेष अधिकारी पुरुष पू. श्री धुंडा महाराज देगलुरकर के 61 वें जन्मदिवस पर पंढरपुर में आयोजित समारोह में प्रकट उद्गार :-
बहुत पुरानी बात है। वारकरियों के सम्बन्ध में मेरे कुछ पूर्वाग्रह थे। ..यह झाँझ -मृदंग बजाने वाला साधारण व्यक्ति है। इससे अधिक कोई अर्थ नहीं है। मुख से भिन्न-भिन्न अभंग (छंद) वह अवश्य कहता है, परन्तु उसका वास्तविक अर्थ वह जानता नहीं। ..परन्तु मैंने (नागपुर में धुंडा महाराज का) जो प्रवचन सुना, उससे मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि मेरा यह भ्रम निरर्थक है। धुंडा महाराज के उस प्रवचन में भक्ति तो थी ही, उसके अतिरिक्त अपने जीवन के भिन्न-भिन्न राजनैतिक एवं सामाजिक प्रश्नों का भी विवेचन किया गया था। 'ज्ञानेश्वरी' साहित्य की दृष्टि से मराठी भाषा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। इसी कारण अपने सारे लोग उसका गुणगान करते हैं। श्रध्देय धुंडा महाराज भी अपनी विद्वतापूर्ण आकर्षक शैली से सतत् प्रवचन करते हुए उसी ग्रंथ को समझाते हैं। साहित्य की दृष्टि से तो वह ग्रंथ उत्तम है ही, परन्तु उसमें प्रतिपाद्य विषय के बारे में जानने की मुझे लालसा हुई। इस हेतु महान पुरुषों के पास बैठकर जो कुछ अध्ययन कर समझ सका उससे यह ध्यान में आया कि आजतक वारकरियों पर 'बुवाबाजी' अर्थात ढोंगीपन का जो आरोप करते हैं, वह निराधार है। वस्तुत: यह संप्रदाय अद्वैत सिध्दांत पर अधिष्ठित तथा अति श्रेष्ठ भक्ति द्वारा व्यक्ति को परम श्रेष्ठ सुख प्राप्त करा देने वाला है, यह मेरी अनुभूति है और उसमें अभी तक किसी प्रकार की भूल तो प्रतीत नहीं हुई, अपितु वह अधिकाधिक दृढ़ ही होती जा रही है। - श्री. माधव सदाशिव गोळवलकर ( गुरुजी ) - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघाचे द्वितीय सरसंघचालक